
रिपोर्ट: Rohtas Darshan चुनाव डेस्क | बिहार | Updated: 20 नवंबर 2025: बिहार विधानसभा चुनाव 2025 का नतीजा विकासशील इंसान पार्टी (वीआईपी) और उसके संस्थापक मुकेश सहनी के लिए सबसे कठिन संदेश लेकर आया है। पिछले चार चुनावों में से तीन में पार्टी का खाता तक नहीं खुला है, और इस बार 13 सीटों पर उतरे सभी उम्मीदवार हार गए। ऐसे में यह सवाल तेज़ हो गया है—क्या ‘सन ऑफ़ मल्लाह’ अब भी बिहार की राजनीति में एक बड़ा फैक्टर हैं या उनकी चमक फीकी पड़ चुकी है?
“अपनी जाति का नेता चाहिए” – ज़मीन पर सहनी को अब भी क्रेज़
मुज़फ्फरपुर के धनौर गाँव में बागमती नदी के किनारे मछली से भरे टोकरे लादे मल्लाह आज भी मुकेश सहनी के नाम पर भरोसा दिखाते हैं। 2025 की शुरुआत में एक युवा सुरेश सहनी ने कहा था—“चाहे मुद्दा उठाएं या न उठाएं, लेकिन हमारी जाति का नेता वही है। दबाया गया है, पर एक दिन सरकार वही बनाएगा।” लेकिन 2025 के नतीजों ने इन उम्मीदों पर ब्रेक लगा दिया। पार्टी को कुल 7.79 लाख वोट मिले, मगर कोई सीट नहीं।
2020 में तिकड़म, 2025 में झटका
2020 में जब वीआईपी एनडीए में शामिल हुई थी, पार्टी ने 11 सीटों पर चुनाव लड़ा और 4 जीतीं। लेकिन वह सफलता टिक नहीं पाई। बाद में सभी विधायक भाजपा में चले गए।
अब 2025 में महागठबंधन में रहते हुए सहनी ने 60 सीटों, डिप्टी सीएम पद और गौड़ाबौराम सीट की मांग कर राजनीति को तनावपूर्ण कर दिया। यह रस्साकशी इतनी बढ़ी कि प्रेस कॉन्फ्रेंस तक रद्द हो गई और अन्ततः राहुल गांधी के हस्तक्षेप से तालमेल बन सका।
गौड़ाबौराम सीट सहनी को मिली, लेकिन विवाद और उलझन बढ़ गई—
• वे खुद लड़ना चाहते थे
• फिर अपने भाई संतोष सहनी को टिकट दिया
• मतदान से ठीक पहले संतोष को हटाकर आरजेडी के अफज़ल अली को समर्थन दे दिया
वरिष्ठ पत्रकारों का कहना है कि ऐसा होता है तो गठबंधन कैडर भ्रमित हो जाता है और इसका नुकसान सीधा चुनावी प्रदर्शन पर पड़ता है।
क्या सहनी वोट ट्रांसफर करवा पाते हैं?
वीआईपी का दावा है कि निषाद और मल्लाह समुदाय का लगभग 9.64% वोट बैंक उनके साथ है। लेकिन विशेषज्ञों का कहना है—यह वोट उनकी ही जाति तक सीमित है, और गठबंधन को उतनी मजबूती से ट्रांसफर नहीं हो पाता।
कांग्रेस और आरजेडी के भीतर भी यह स्वीकार किया जा रहा है कि कई जगह वोट ट्रांसफर नहीं हुआ। वहीं आलोचकों का कहना है कि सहनी की “बड़े दावे, छोटे असर” शैली उनकी छवि को ज्यादा और प्रभाव को कम दिखाती है।
डिप्टी सीएम घोषणा से मुस्लिम वोट नाराज़?
महागठबंधन ने प्रदर्शन कमजोर होने के बावजूद सहनी को डिप्टी सीएम फेस घोषित किया।
विश्लेषकों का कहना है कि इससे मुस्लिम वोटर्स में असंतोष पैदा हुआ—“2.6% आबादी वाले को डिप्टी सीएम बनाया गया, 17% आबादी वाले मुस्लिमों को कुछ नहीं।”
यही मुद्दा सोशल मीडिया और जमीनी बहसों में उठता रहा।
2014 से उठान, 2019 से चुनाव, 2020 में एक सफलता
मुकेश सहनी—
• दरभंगा की साधारण पृष्ठभूमि से आते हैं
• कभी मुंबई में फिल्म सेट डिजाइनर रह चुके
• एसएल भंसाली जैसी फिल्मों में काम किया
• फिर 2014 में निषाद समाज के बड़े आंदोलन शुरू किए
• 2018 में वीआईपी की स्थापना की
• 2019, 2024, 2025—तीनों चुनावों में खाता नहीं खुला
• सिर्फ 2020 में 4 जीत मिल सकी
हार के बाद सहनी ने कहा—
“हम महागठबंधन और राहुल गांधी के साथ रहेंगे, लड़ाई जारी रहेगी।”
लेकिन अब बड़ा सवाल यह है—
क्या बिहार की राजनीति में वीआईपी भविष्य दर्ज करा पाएगी या लगातार हार उसके अस्तित्व के लिए खतरा बन चुकी है?


