
रिपोर्ट: Rohtas Darshan चुनाव डेस्क | रांची | Updated: 26 नवंबर 2025: झारखंड विधानसभा में नियुक्तियों और पदोन्नतियों में कथित अनियमितताओं को लेकर उठे विवाद के बीच सुप्रीम कोर्ट ने एक अहम फैसला सुनाया है। शीर्ष अदालत ने मंगलवार को स्पष्ट किया कि फिलहाल इस मामले में केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (CBI) कोई भी प्रारंभिक जांच (Preliminary Inquiry) आगे नहीं बढ़ाएगी। यह निर्णय उस इंटरलोक्यूटरी एप्लिकेशन को खारिज करते हुए दिया गया है, जिसमें CBI ने विधानसभा नियुक्ति मामले पर लगी रोक हटाने की अनुमति मांगी थी।
सुनवाई के दौरान झारखंड विधानसभा का पक्ष रखते हुए वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने तर्क दिया कि यह पूरा मामला राजनीतिक उद्देश्यों से प्रेरित है और बिना किसी ठोस आधार के CBI इस मुद्दे में हस्तक्षेप करना चाहती है। उन्होंने कहा कि सुप्रीम कोर्ट पहले ही हाईकोर्ट के आदेश पर रोक लगा चुका है, इसलिए CBI आवेदन का कोई औचित्य नहीं बनता। दूसरी ओर, CBI की ओर से एएसजी एस.वी. राजू ने नियुक्तियों में गंभीर अनियमितताओं के आरोपों का हवाला देते हुए जांच की आवश्यकता पर जोर दिया, लेकिन पीठ ने उनकी दलीलों को अस्वीकार कर दिया।
सुनवाई के दौरान पीठ ने साफ शब्दों में कहा कि एजेंसियों का इस तरीके से इस्तेमाल चिंता का विषय है। चीफ जस्टिस बी.आर. गवई ने टिप्पणी की—“आप अपनी राजनीतिक लड़ाइयों के लिए एजेंसी का इस्तेमाल क्यों करते हैं? कई बार हम कह चुके हैं कि जांच एजेंसियों के दुरुपयोग पर रोक लगनी चाहिए।”
यह मामला तब चर्चा में आया जब सामाजिक कार्यकर्ता शिव शंकर शर्मा ने झारखंड हाईकोर्ट में याचिका दायर कर आरोप लगाया कि विधानसभा में बड़े पैमाने पर अवैध नियुक्तियाँ हुई हैं, जिनकी CBI जांच आवश्यक है। याचिका में 2018 में तत्कालीन राज्यपाल द्वारा दिए गए 30-बिंदु निर्देशों पर कार्रवाई न होने का मुद्दा भी उठाया गया था। सितंबर 2024 में हाईकोर्ट ने उन आरोपों को गंभीर मानते हुए CBI को प्रारंभिक जांच का आदेश दिया था।
इसके बाद झारखंड विधानसभा और राज्य सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में विशेष अनुमति याचिका (SLP) दायर कर हाईकोर्ट के आदेश को चुनौती दी। उन्होंने कहा कि राज्य की एजेंसियों को अयोग्य ठहराना और सीधे CBI को पहली जांच एजेंसी बनाना न्यायिक सिद्धांतों के अनुरूप नहीं है। नवंबर 2024 में सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के आदेश पर रोक लगाते हुए कहा था कि पहले यह देखा जाएगा कि क्या CBI को सीधे जांच सौंपने का आदेश उचित था। अब CBI की ओर से दायर एप्लिकेशन को खारिज कर शीर्ष अदालत ने संकेत दे दिया है कि फिलहाल इस मामले में CBI की कोई नई कार्रवाई नहीं होगी।
इस मामले पर आगे की विस्तृत सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट यह तय करेगा कि हाईकोर्ट का आदेश कानूनी रूप से कितना उचित था और क्या इस मामले में CBI जैसी केंद्रीय एजेंसी की प्रत्यक्ष भूमिका आवश्यक है।


