
रिपोर्ट: Rohtas Darshan चुनाव डेस्क | बिहार | Updated: 25 नवंबर 2025: बिहार विधानसभा चुनाव में करारी शिकस्त के तुरंत बाद कांग्रेस अब अपने सबसे बड़े और अंतिम मज़बूत गढ़—कर्नाटक—में गंभीर राजनीतिक संकट का सामना कर रही है। मुख्यमंत्री सिद्धारमैया और उपमुख्यमंत्री व प्रदेश अध्यक्ष डी.के. शिवकुमार के बीच चल रही खींचतान ने पार्टी हाईकमान को चिंता में डाल दिया है। यह विवाद अब सड़कों से होते हुए दिल्ली दरबार तक पहुंच चुका है, जहाँ दोनों धड़ों के समर्थक विधायक स्थिति साफ होने का इंतजार कर रहे हैं।
ढाई-ढाई साल का सीएम फॉर्मूला बना तनाव की जड़
डीके शिवकुमार समूह का दावा है कि 2023 कर्नाटक विधानसभा चुनाव के बाद कांग्रेस नेतृत्व ने एक अनौपचारिक फार्मूला तय किया था – ढाई साल सिद्धारमैया और ढाई साल डीके शिवकुमार मुख्यमंत्री।
अब, सिद्धारमैया के डेढ़ साल से अधिक का कार्यकाल पूरा होने के बाद यह मांग फिर से मुखर हो गई है। दूसरी ओर सिद्धारमैया खेमे का कहना है कि ऐसा कोई समझौता कभी हुआ ही नहीं, और मुख्यमंत्री पूरे कार्यकाल के लिए बने रहेंगे।
दिल्ली में जमावड़ा – हाईकमान से मिलने को बेताब विधायक
रिपोर्ट्स के अनुसार:
• 10 से अधिक विधायकों का समूह रविवार रात से दिल्ली में डेरा डाले हुए है।
• इनकी मांग है कि वे पार्टी हाईकमान से सीधे संवाद कर स्थिति साफ करवाना चाहते हैं।
• विधायकों ने केसी वेणुगोपाल और रणदीप सुरजेवाला से भी संपर्क करने की कोशिश की, लेकिन मुलाकात नहीं हो सकी।
• अब तक इन विधायकों की राहुल गांधी या अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे से भी बैठक नहीं हो पाई है।
दिल्ली पहुंचे विधायकों का कहना है: “हम दिल्ली इसलिए आए हैं ताकि पार्टी नेतृत्व से स्पष्ट निर्णय सुना जा सके। स्थिति जितनी अनिर्णय की होगी, उतना नुकसान सरकार को होगा।”
बिहार में हार ने बढ़ाई संवेदनशीलता
कांग्रेस के लिए यह संकट ऐसे समय सामने आया है जब:
• बिहार में पार्टी को बुरी हार मिली
• नेताओं की अंदरूनी एकता पर सवाल उठ रहे हैं
• विपक्ष उन्हें अविश्वसनीय और अस्थिर करार दे रहा है
ऐसे में कर्नाटक का संकट पार्टी की राष्ट्रीय छवि और मनोबल—दोनों पर असर डाल रहा है।
कर्नाटक – कांग्रेस का अंतिम बड़ा किला
वर्तमान स्थिति में कांग्रेस:
• कर्नाटक ही एकमात्र बड़ा राज्य है जहाँ वह अपने दम पर सत्ता में है।
• तेलंगाना और हिमाचल में सरकार है, लेकिन दोनों राजनीतिक और जनसंख्या के लिहाज से काफी छोटे हैं।
यही कारण है कि कर्नाटक सरकार के डगमगाने से कांग्रेस के राष्ट्रीय अस्तित्व पर सीधा असर पड़ सकता है।
केंद्र में हाईकमान का धर्मसंकट
दोनों नेताओं की भूमिका कर्नाटक की राजनीति में बेहद अहम रही है।
सिद्धारमैया
• राज्य के सबसे अनुभवी और लोकप्रिय चेहरा
• आठ साल से अधिक मुख्यमंत्री
• पाँच साल विपक्ष के नेता
• स्वयं को पूरा कार्यकाल पूरा करने का हकदार मानते हैं
डी.के. शिवकुमार
• प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष
• चुनाव को जीतने में मुख्य रणनीतिक भूमिका
• पार्टी के मजबूत फंड मैनेजर और कार्यकर्ता-प्रमुख नेता
• चाहते हैं कि पार्टी अपने वादे पर कायम रहे
पार्टी नेतृत्व के सामने चुनौती यह है कि:
• एक को नाराज़ करने से संगठन बिखर सकता है
• दूसरे को रोकने से वादाखिलाफी का आरोप पार्टी पर लग सकता है
बीजेपी की नजर – राजनीतिक संदेश बड़ा
हालांकि कर्नाटक भाजपा नेतृत्व ने किसी भी प्रकार के बैक-डोर संपर्क से इनकार किया है, लेकिन उनके भीतर यह मौन संतोष साफ दिख रहा है कि: कांग्रेस अपने ही बोझ से हिल रही है, और भाजपा को कुछ किए बिना राजनीतिक लाभ मिल सकता है।
अगले कुछ दिन बेहद अहम
हाईकमान द्वारा लिए जाने वाले निर्णय से:
• सरकार की स्थिरता
• कांग्रेस की आंतरिक एकता
• राष्ट्रीय स्तर पर पार्टी की साख
तीनों प्रभावित होंगे।
पार्टी के रणनीतिकारों की नजर अगली 48 घंटे पर टिकी है—क्योंकि यही तय करेगा कि: कर्नाटक कांग्रेस बिखरेगी या एक फैसले के साथ मजबूत होकर निकलेगी।


