आर० डी० न्यूज़ नेटवर्क : 17 नवंबर 2023 : कल्याण मेरा कुछ नहीं है, मुझे कुछ नहीं चाहिये और मुझे अपने लिये कुछ नहीं करना है — ये तीन बातें शीघ्र उद्धार करनेवाली हैं। भगवान्‌ का संकल्प हमारे कल्याण के लिये है। अगर हम अपना कोई संकल्प न रखें तो भगवान्‌ के संकल्प के अनुसार अपने-आप हमारा कल्याण हो जायगा। संसार में ऐसी कोई भी परिस्थिति नहीं है, जिसमें मनुष्यका कल्याण न हो सकता हो । कारण कि परमात्मा प्रत्येक परिस्थिति में समानरूप से विद्यमान हैं।कल्याण की प्राप्ति बहुत सुगम है, पर कल्याण की इच्छा ही नहीं हो तो वह सुगमता किस काम की?

https://youtu.be/wbm9rlA22ms?si=wFNs1lqGkwG7RV9Y

संसार का काम तो और कोई भी कर लेगा, पर अपने कल्याणका काम तो खुद को ही करना पड़ेगा; जैसे- भोजन और दवाई खुद को ही लेनी पड़ती है।अपने कल्याण के लिये किसी नयी परिस्थिति की जरूरत नहीं है। प्राप्त परिस्थिति के सदुपयोग से ही कल्याण हो सकता है।कल्याण क्रिया से नहीं होता, प्रत्युत भाव और विवेक से होता है।घर में रहनेवाले सभी लोग अपनेको सेवक और दूसरोंको सेव्य समझें तो सबकी सेवा हो जायगी और सबका कल्याण हो जायगा।दूसरों की तरफ देखनेवाला कभी कर्तव्यनिष्ठ हो ही नहीं सकता, क्योंकि दूसरों का कर्तव्य देखना ही अकर्तव्य है गृहस्थ हो अथवा साधु हो, जो अपने कर्तव्य का ठीक पालन करता है, वही श्रेष्ठ है।अपने लिये कर्म करने से अकर्तव्यकी उत्पत्ति होती है अपने कर्तव्य (धर्म) का ठीक पालन करनेसे वैराग्य हो जाता है। यदि वैराग्य न हो तो समझना चाहिये कि हमने अपने कर्तव्य का ठीक पालन नहीं किया।अपने कर्तव्यका ज्ञान हमारेमें मौजूद है। परन्तु कामना और ममता होनेके कारण हम अपने कर्तव्यका निर्णय नहीं कर पाते।चारों वर्गों और आश्रमों में श्रेष्ठ व्यक्ति वही है, जो अपने कर्तव्य का पालन करता है। जो कर्तव्यच्युत होता है, वह छोटा हो जाता है।संसारके सभी सम्बन्ध अपने कर्तव्यका पालन करनेके लिये ही हैं, न कि अधिकार जमाने के लिये ।

सुख देने के लिये हैं, न कि सुख लेनेके लिये।एकमात्र अपने कल्याणका उद्देश्य होगा तो शास्त्र पढ़े बिना भी अपने कर्तव्य का ज्ञान हो जायगा । परन्तु अपने कल्याण का उद्देश्य न हो तो शास्त्र पढ़ने पर भी कर्तव्य का ज्ञान नहीं होगा, उल्टे अज्ञान बढ़ेगा कि हम जानते हैं ! वर्तमान समय में घरों में, समाज में जो अशान्ति, कलह, संघर्ष देखनेमें आ रहा है, उसमें मूल कारण यही है कि लोग अपने अधिकार की माँग तो करते हैं, पर अपने कर्तव्य का पालन नहीं करते।कोई भी कर्तव्य-कर्म छोटा या बड़ा नहीं होता। छोटे-से छोटा और बड़े से बड़ा कर्म कर्तव्यमात्र समझकर (सेवाभाव से) करने पर समान ही है।जिससे दूसरों का हित होता है, वही कर्तव्य होता है। जिससे किसी का भी अहित होता है, वह अकर्तव्य होता है।राग-द्वेषके कारण ही मनुष्यको कर्तव्य-पालनमें परिश्रम या कठिनाई प्रतीत होती है।जिसे करना चाहिये और जिसे कर सकते हैं, उसका नाम ‘कर्तव्य’ है। कर्तव्यका पालन न करना प्रमाद है, प्रमाद तमोगुण है और तमोगुण नरक है।अपने सुखके लिये किये गये कर्म ‘असत्’ और दूसरे के हित के लिये किये गये कर्म ‘सत्’ होते हैं। असत्-कर्म का परिणाम जन्म-मरण की प्राप्ति और सत्-कर्म का परिणाम परमात्माकी प्राप्ति है।अच्छे-से-अच्छा कार्य करो, पर संसार को स्थायी मानकर मत करो।जो निष्काम होता है, वही तत्परतापूर्वक अपने कर्तव्य का पालन कर सकता है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

error: Content is protected !! Copyright Reserved © RD News Network