कार्यक्रम की शुरुआत संस्थान के निदेशक डॉ. नरेन्द्र पाठक ने की

हिन्दी की सैद्धांतिक आलोचना को विकसित करने में उनकी बहुत बड़ी भूमिका रही है: तरुण कुमार

आर० डी० न्यूज़ नेटवर्क : 03 दिसम्बर 2022 : पटना। ‘‘हिन्दी आलोचना को हिन्दी भाषी क्षेत्रों में सामाजिक, राजनीतिक फलक पर विकसित करने में मैनेजर पाण्डेय की अग्रणी भूमिका रही है। उनकी भाषा पर अलग से रिसर्च की दरकार है। उनकी भाषा में व्यंग्य, वक्रोक्ति और अनेक विश्लेषणात्मक कौशल का उपयोग हुआ है। हिन्दी की सैद्धांतिक आलोचना को विकसित करने में डॉ. रामविलास शर्मा के बाद उनकी बहुत बड़ी भूमिका रही है।’’ यह बातें पटना विश्वविद्यालय के हिन्दी विभागाध्यक्ष डॉ. तरुण कुमार ने जगजीवन राम संसदीय अध्ययन एवं राजनीतिक शोध संस्थान, बागडोर, स्त्रीकाल एवं युगधारा की पहल पर आयोजित मैनेजर पाण्डेय की स्मृति सभा में कही। हिन्दी के प्रसिद्ध मार्क्सवादी आलोचक एवं जेएनयू भारतीय भाषा केंद्र के पूर्व अध्यक्ष डॉ. मैनेजर पाण्डेय की याद में आयोजित यह स्मृति सभा जगजीवन राम संसदीय अध्ययन एवं राजनीतिक शोध संस्थान में संपन्न हुई। कार्यक्रम की शुरुआत संस्थान के निदेशक डॉ. नरेन्द्र पाठक ने की। उनकी स्मृति में दो मिनट का मौन रखा गया और उनकी तस्वीर पर उपस्थित लोगों ने माल्यार्पण किया।  

संस्थान के निदेशक डॉ. नरेन्द्र पाठक ने कहा कि मैनेजर पाण्डेय का जाना दुःखद है, लेकिन उन्हें इस बात का गर्व है कि इतने सारे लोग संस्थान में उपस्थित हैं। कवि आलोक धन्वा ने मैनेजर पाण्डेय से जुड़े संस्मरण साझा करते हुए कहा कि वे मेरे भिखना पहाड़ी वाले फ्लैट पर रूकते थे। उनमें सेंस ऑफ ह्यूमर गजब का था। उन्होंने कहा कि जिनकी कोई महफिल नहीं, हिन्दी में आज ऐसे ही लेखक आ रहे हैं। मैनेजर पाण्डेय उनमें से नहीं थे।

वरिष्ठ पत्रकार प्रकाश चंद्रायन ने नवजनवादी आंदोलन के दौर से जुड़े संस्मरण साझा किये। उन्होंने कहा कि वे उन बौद्धिकों में थे, जिन्होंने कभी भी इस धारा को लज्जित नहीं होने दिया। उन्होंने नागपुर का एक संस्मरण साझा करते हुए कहा कि राहुल सांकृत्यायन पर एक आयोजन किया था, जिसमें नामवर सिंह और मैनेजर पाण्डेय दोनों आये थे। नामवर सिंह ने तिलक के अधीनस्थ होकर दुराग्रहपूर्ण विचार रखे थे, जिसकी काफी निन्दा हुई। लेकिन यह मैनेजर पाण्डेय ही थे, जिन्होंने बहुत ऊंचे स्तर पर मार्क्सवाद और बौद्धिज्म से जोड़कर राहुल की व्याख्या की। वे हिन्दी के उन आलोचकों में थे, जो सदैव नई-नई चीजों को विकसित कर हिन्दी आलोचना को धार देते थे। उन्होंने गांधी पर लिखे श्री पाण्डेय के लंबे लेख में संत साहित्य के प्रभाव की चर्चा की और उन्हें अपने समय का महत्वपूर्ण आलोचक बताया।

छपरा विश्वविद्यालय से आये डॉ. ब्रह्मदेव मंडल ने श्री पाण्डेय के गांव और उनके रिश्ते-नाते की भी चर्चा की। उन्होंने कहा कि समाज के लिये मनुष्य का चेहरा सामाजिक होना चाहिये। उन्होंने कहा कि यदि साहित्य मनुष्य के लिए नहीं है, तो उसकी सार्थकता पर प्रश्न चिन्ह् खड़ा हो जाता है। ब्रज सूची और अश्वघोष पर श्री पाण्डेय के किये गये काम की सराहना करते हुए उन्होंने अपने समय का मूल्यवान आलोचक बताया।

दक्षिण बिहार केन्द्रीय विश्वविद्यालय के योगेश प्रताप शेखर ने मैनेजर पाण्डेय से जुड़े कुछ अनुभव साझा किये और कहा कि भक्ति आंदोलन पर किया गया उनका काम बहुत महत्वपूर्ण है।

संस्कृतिकर्मी अनिल अंशुमान ने कहा कि 80 के दशक में उन्होंने पहली बार इंडियन पीपुल्स फ्रंट में मैनेजर पाण्डेय को देख था, तब वह नवजनवादी सांस्कृतिक मोर्चा चलाते थे। वे ऐसे मार्क्सवादी आलोचक थे, जो महज किताबी नहीं अपितु वैचारिक संगठक की भूमिका में थे। संस्कृतिकर्मियों को संगठित करने में उनकी रुचि थी। वे जो बोलते थे, करते थे। समारोह में प्रो. शिव कुमार यादव, आनंद बिहारी, डॉ. गोपाल आदि वक्ताओं ने भी संबोधित किया।

पत्रकार पुष्पराज ने बहुत विस्तार के साथ मैनेजर पाण्डेय के अंतिम दिनों से जुड़े संस्मरण और उनके लिये गये इंटरव्यू से लोगों को अवगत कराया। उन्होंने उनके गांव और उनकी पूरी वैचारिक यात्रा के बारे में भी विस्तार से अपनी बातें रखी। उन्होंने कहा कि उनके गांव लोहठी में अस्पताल और स्कूल भी बनाया जाना चाहिये ताकि आने वाली पीढ़ी एक साहित्यिक तीर्थ के रूप में उनको याद रख सके। समारोह में भाई एजाज की मदद से प्रोजेक्टर के माध्यम से मैनेजर पाण्डेय का एक इंटरव्यू भी प्रसारित किया गया। कार्यक्रम का संचालन अरुण नारायण ने किया। इस मौके पर सुशील कुमार, अरुण शाद्वल, कौशलेन्द्र कुमार, इंद्रजीत, ज्योति स्पर्श, नरेन्द्र कुमार, एजाज अहमद, संजीव कुमार श्रीवास्तव, सुरेश महतो, राकेश कुमार, ममीत प्रकाश, शिकु देवी, सुनिधि, उपमा कुमारी भी उपस्थित रहे।

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