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आर० डी० न्यूज़ नेटवर्क : 22 अगस्त 2023 : श्री बंशीधर नगर (गढ़वा) : पूज्य संत श्री श्री 1008 श्री लक्ष्मी प्रपन्न जियर स्वामी जी महाराज ने श्रीमद् भागवत कथा के दौरान सोमवार को कहा कि शुकदेवजी महाराज से राजा परीक्षित ने पुछा की ये हमारे भावना आएंगे कैसे। तो सुकदेव जी महाराज ने कहा कि इसके लिए योग को करना पडेगा। तो फिर प्रश्न किया कि योग कितने हैं किसे कहते हैं। योग केवल इतना ही नही की सांस को लेना फिर छोड़ना। यह केवल स्वास्थ्य लाभ के लिए अच्छा है। लेकिन इतने से हम योग के अधिकारी हो जाएंगे यह बात नही है। योग का अर्थ है कि हमारा मन, चित् बुद्धि कहीं भटक गया है, कहीं अटक गया है, उसको चारो तरफ से केन्द्रित करके, पकड़ करके, समझा करके और एक जगह ला करके बांध लेना इसी का नाम है योग।
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स्वामी जी महाराज ने बताया कि चित् की चंचलता को रोका नही जा सकता है। मोड़ा जा सकता है। इसको दुसरे जगह ट्रांसफर किया जा सकता है। प्रतिस्थापित किया जा सकता है। जो चीज नही रूकने वाला है उसे कैसे आप रोक सकते हैं। इसलिए मन को लगाना है तो वहां लगाइए जिसने पुरे संसार को बनाया है। उन्ही में अपनी चित् की चंचलता को लगा दीजिए। और जब जब मन करता है कुछ गुनगुनाने की तो मुरली वाले की नाम को गाइए। घुमने की इच्छा हो तो क्लब में मत जाइए। बल्कि विन्ध्याचल, अयोध्या, मथुरा, काशी चले जाइए। ऐसा करने से एक न एक दिन जो गलत प्रक्रियाओं में लग गया है वह अगत्या मुड़ जाएगा और मुड़कर हमेशा-हमेशा के लिए उससे अलग हो जाएगा।
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हर व्यक्ति को मर्यादा के अंतर्गत अपने जीवन को जीना चाहिए। किसी भी परिस्थिति में मर्यादा का उल्लंघन नहीं करना चाहिए। विषम परिस्थिति में भी मर्यादा का पालन करते रहना चाहिए। क्योंकि मर्यादा ही पुरुष की शोभा है।मनुष्य की शोभा है संसार की शोभा है राष्ट्र की शोभा है कुल की शोभा है इस जगत की शोभा है।बिना मर्यादा का मनुष्य जानवर से भी गया गुजरा है।जिस प्रकार जल विहीन नदी का कोई अस्तित्व नहीं रह जाता। उसी प्रकार मर्यादा के बिना मनुष्य का भी कोई अस्तित्व नहीं है। जो विषम परिस्थितियों में भी मर्यादा का पालन करते हैं धर्म का पालन करते हैं माता-पिता का कद्र करते हैं स्त्री का सम्मान करते हैं बुजुर्गों का सम्मान करते हैं उन पर लक्ष्मी नारायण भगवान की कृपा बनी रहती है। और उनका परिवार विकास करता है। कहा कि सबको आपस में प्रेम और सद्भाव के साथ जीवन जीना चाहिए भरत के चरित्र को जीवन में उतारना चाहिए। भाई भरत के चरित्र का पूजा किया जाए और एक भाई से बेईमानी किया जाए यह उचित नहीं है। जिस प्रकार त्रेता द्वापर में एक भाई दूसरे भाई के लिए त्याग की भावना रखते थे।उसको जीवन में उतारना चाहिए। और अपने परिवार के लिए अपने भाई के लिए अपने समाज के लिए मन में त्याग की भावना रखनी चाहिए। स्वामी जी महाराज ने कहा कि एक भाई से बेईमानी कर कबूतर को दाना खिलाने से कोई फायदा नहीं हो सकता।
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