By Rohtas Darshan Digital Desk | मुंबई | Updated: October 31, 2025 : महाराष्ट्र सरकार ने किसानों को राहत देने की दिशा में बड़ा कदम उठाया है। राज्य सरकार ने किसानों की कर्जमाफी की संभावनाओं की समीक्षा और सिफारिशों के लिए एक उच्चाधिकार समिति गठित करने का निर्णय लिया है।

यह फैसला किसान नेता और विधायक बच्चू कडू के हालिया आंदोलन के बाद लिया गया है। सरकार पर किसानों के बढ़ते दबाव और आंदोलन के व्यापक स्वरूप के चलते यह कदम राजनीतिक रूप से भी अहम माना जा रहा है।

कमेटी का गठन — कौन होंगे सदस्य

राज्य सरकार के आदेश के अनुसार, इस उच्चाधिकार समिति के अध्यक्ष होंगे —

👉 प्रवीण परदेशी, मुख्यमंत्री के प्रमुख आर्थिक सलाहकार और मित्रा समूह के सीईओ।

समिति में कुल 9 सदस्य होंगे —

•             महसूल, वित्त, कृषि, सहकार और विपणन विभागों के अपर मुख्य सचिव

•             महाराष्ट्र राज्य सहकारी बैंक के प्रतिनिधि

•             बैंक ऑफ महाराष्ट्र के प्रतिनिधि

सरकार ने समिति को 6 महीनों के भीतर रिपोर्ट सौंपने का निर्देश दिया है।

समिति का काम — क्या करेगी रिपोर्ट

यह समिति किसानों की कर्जमाफी और आर्थिक राहत के लिए अल्पकालिक और दीर्घकालिक सिफारिशें तैयार करेगी।

साथ ही, यह तय करेगी कि किन श्रेणियों के किसानों को प्रत्यक्ष कर्जमाफी दी जाए और किन्हें पुनर्गठन या ब्याज छूट का लाभ मिल सकेगा।

आंदोलन से सरकार पर दबाव

पिछले कुछ हफ्तों से महाराष्ट्र के कई जिलों में किसान आंदोलन कर रहे हैं।

विधायक बच्चू कडू के नेतृत्व में किसान ट्रैक्टर मार्च निकाल रहे हैं और सड़क पर उतरकर सरकार से जवाब मांग रहे हैं।

उनकी प्रमुख मांगें हैं —

•             कर्ज की पूर्ण माफी

•             एमएसपी (न्यूनतम समर्थन मूल्य) की कानूनी गारंटी

•             सोयाबीन की खरीद NAFED के जरिए करवाना

•             भावांतर योजना को फिर से लागू करना

बच्चू कडू ने आरोप लगाया कि “सरकार ने किसानों से कई वादे किए, लेकिन आज तक उन्हें पूरा नहीं किया गया।”

राजनीतिक एंगल: विपक्ष ने कहा—आंदोलन का डर है सरकार को

राजनीतिक विश्लेषकों के अनुसार, महाराष्ट्र सरकार का यह निर्णय आंदोलन की तीव्रता और आने वाले नगर निकाय व पंचायत चुनावों को देखते हुए लिया गया है।

वहीं, विपक्ष ने सरकार पर तंज कसते हुए कहा कि “जब किसानों ने ट्रैक्टर सड़कों पर उतार दिए, तब जाकर सरकार को होश आया।”

कांग्रेस और राकांपा ने कहा कि यह राजनीतिक दबाव में लिया गया फैसला है, जो अस्थायी राहत तो देगा लेकिन स्थायी समाधान नहीं है।

विपक्षी दलों ने मांग की है कि सरकार सिर्फ समिति न बनाए बल्कि तुरंत कर्जमाफी की घोषणा करे।

कृषि अर्थशास्त्रियों की राय

विशेषज्ञों का कहना है कि महाराष्ट्र जैसे बड़े कृषि राज्य में कर्जमाफी की योजना लागू करना वित्तीय दृष्टि से चुनौतीपूर्ण होगा।

2017 में तत्कालीन फडणवीस सरकार ने लगभग 34,000 करोड़ रुपए की कर्जमाफी की घोषणा की थी, जिसका प्रभाव राज्य के बजट पर कई वर्षों तक पड़ा।

इस बार, यदि नई कर्जमाफी योजना लागू की जाती है, तो राज्य के वित्तीय घाटे में वृद्धि संभव है, लेकिन राजनीतिक तौर पर यह लोकप्रिय निर्णय साबित हो सकता है।

निष्कर्ष: किसान आंदोलन ने दिलाई आवाज़ को ताकत

कुल मिलाकर, महाराष्ट्र में किसानों का यह आंदोलन राज्य की राजनीति में नया मोड़ ला सकता है।

कर्जमाफी समिति का गठन यह संकेत देता है कि सरकार अब किसानों के सवालों को नज़रअंदाज़ नहीं कर सकती।

आने वाले महीनों में समिति की रिपोर्ट और सरकार की कार्रवाई यह तय करेगी कि क्या यह कदम सिर्फ राजनीतिक रणनीति है या वास्तविक राहत का प्रयास।

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